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Saturday, January 29, 2011

यहाँ हैल्थ की मज़बूरी है, वहां वैल्थ की मज़बूरी है--



हमारे देश की ७१ % जनता गाँव में रहती है । करीब ३८ % गरीबी की रेखा से नीचे रहते हैं ।
शहर और गाँव के , अमीरों और गरीबों के जीवन में कितना अंतर होता है और कितनी समानताएं होती हैं , यह वही जान सकता है जिसने दोनों ही जिंदगियों को करीब से देखा हो ।

प्रस्तुत है ऐसी ही एक रचना जो आपको रूबरू कराएगी जीवन की विषमताओं से


सूखी
रोटी ये भी खाते हैं , वे भी खाते हैं
डाइटिंग ये भी करते हैं , वे भी करते हैं
जो डाइटिंग अमीरों का शौक है ,
वही गरीबों के जीवन का खौफ है

मज़बूरी
यहाँ भी हैं, मज़बूरी वहां भी है
यहाँ हैल्थ की मज़बूरी है, वहां वैल्थ की मज़बूरी है
मक्की सरसों गाँव में हालात की बेबसी दर्शाता है
वही शहर के आलिशान रेस्तरां में डेलिकेसी कहलाता है
जई की जो फसल गाँव में , पशुओं को खिलाई जाती है
वही शहर में ओट मील बनके, ऑस्ट्रेलिया से मंगाई जाती है

फटे कपडे विलेजर्स का तन ढकने का , एकमात्र साधन है
कपडे फाड़कर पहनना , शहर के टीनेजर्स का लेटेस्ट फैशन है ।

यहाँ सिक्स पैक एब्स के लिए रात भर ट्रेड मिल पर पसीना बहाते हैं
वहां किसानों के एब्स मेहनत के पसीने से खुद ही उभर आते हैं
मज़बूर ये भी हैं , मज़बूर वे भी हैं
यहाँ हैल्थ की मज़बूरी है, वहां वैल्थ की मज़बूरी है



वहां मूंह अँधेरे जाते हैं , जोहड़ जंगल
यहाँ घर में ही कक्ष का आराम है ।

वहां काम पर जाते हैं , पैदल चलकर
यहाँ पैदल चलना भी एक काम है
गाँव की उन्मुक्त हवा में , किसानों के ठहाके गूंजते हैं
यहाँ हंसने के लिए भी लोग, लाफ्टर क्लब ढूंढते हैं
वहां पीपल की शीतल छाँव से मंद मंद पुरवाई का मेल
यहाँ एयर की कंडीशन ऐसी कि एयर कंडिशनर भी फेल

जो किसान अन्न उगाता है , एक दिन धंस जाता है
रोटी की तलाश में , और क़र्ज़ के भुगतान में
वहीँ शहरी उपभोक्ता फंस जाता है
कोलेस्ट्रोल के प्लौक में, और मधुमेह के निदान में
यहाँ भी मज़बूरी है , वहां भी मज़बूरी है
यहाँ हैल्थ की मज़बूरी है, वहां वैल्थ की मज़बूरी है

नोट : यह रचना आपको जानी पहचानी लगेगीयह पहले प्रकाशित रचना का मूल रूप है


Tuesday, January 18, 2011

सौन्दर्य और कला की प्रतिमूर्ति --माधुरी दीक्षित --एक झलक.

माधुरी दीक्षित --एक ऐसा नाम जो ज़ेहन में आते ही दिल धक् धक् करने लगता है । करीब दो दशकों तक करोड़ों युवा दिलों पर राज़ करने के बाद, माधुरी दीक्षित शादी कर यू एस में बस गई थी। अब एक बार फिर देश में टी वी पर उनकी झलक दिखाई दे रही हैं--झलक दिखला जा में

सौन्दर्य, अदा और कला का एक ऐसा अद्भुत संगम हैं माधुरी दीक्षित कि आज भी उनके दीवानों की कोई कमी नहीं ।

माधुरी दीक्षित का नाम आते ही हमें तो याद आने लगते हैं मुंबई के डॉ तुषार शाह जिन्हें ग्रेट इन्डियन लाफ्टर चैलेंज में देखकर हमें भी जोश आ गया था और दो बार प्रोग्राम के डायरेक्टर पंकज जी से मुलाकात के बाद भी जब हमें नहीं चुना गया तो दिल्ली आज तक पर दिल्ली हंसोड़ दंगल जीत कर ही सब्र करना पड़ा ।
लेकिन वो कहानी फिर कभी ।

अभी तो डॉ तुषार शाह की वो कविता याद आ रही है :

माधुरी को ले गया डॉ नेने
क्या गुनाह किया था मैंने

इन दो पंक्तियों में जैसे डॉ तुषार ने देश के सारे डॉक्टरों के दिल की बात कह दी ।

हालाँकि उनके दीवानों में सबसे बड़ा नाम आता है एम् ऍफ़ हुसैन का जिनकी दीवानगी इस कदर बढ़ी कि उन्होंने माधुरी को लेकर एक फिल्म ही बना डाली --ग़ज़गामिनी

आइये अपनी पसंदीदा कलाकारा से एक हसीन मुलाकात कराते हैं ।


१५ मई १९६७ को मुंबई में जन्मी माधुरी का बचपन का नाम था --बबली । आरम्भ से ही उन्हें नृत्य का बड़ा शौक था । हिंदी फिल्मों में भी उनके नृत्यों पर आज तक भी युवा बदन अपने आप थिरकने लगते हैं ।
उनके फ़िल्मी जीवन की शुरुआत हुई १९८४ में फिल्म अबोध से ।


उस वक्त माधुरी जी , एक अबोध बालिका ही तो थी ।
फिल्म नहीं चली और ४ साल तक उन्हें कोई विशेष सफलता नहीं मिली।


लेकिन १९८८ में आई फिल्म तेज़ाब ने उनकी जिंदगी बदल दी ।
मोहिनी --मोहिनी --मोहिनी --के नारों पर शुरू हुआ उनका डांस --एक दो तीन चार पांच छै सात आठ नौ दस ग्यारा ----इस गाने ने देश में धूम मचा दी ।
१९८९ में परिंदा और राम लखन भी बड़ी कामयाब रही ।

१९९० में आमिर खान के साथ आई फिल्म --दिल । इस फिल्म में पहले नोंक झोंक फिर प्यार का अहसास बहुत खूबसूरती से दिखाया गया था ।

इसी फिल्म में पहली बार हमें पता चला कि किसी कंजूस को मक्खीचूस क्यों कहते हैं

१९९१ में साजन , १९९२ में बेटा और १९९३ में खलनायक हिट रही

खलनायक का गाना --चोली के पीछे क्या है --सुनकर आज भी आवाज़ निकलती है --हाए-- -- -- !


लेकिन १९९४ में जिस फिल्म ने ज़बर्ज़स्त धूम मचाई वो थी --हम आपके हैं कौन
इस फिल्म में माधुरी सचमुच बबली लगी थी ।
१९९५ में आई फिल्म राजा के गाने और नृत्य हमें बड़े पसंद आए ।

२००२ में उनकी आखिरी सफल फिल्म आई --देवदास जिसमे उनका चंद्रमुखी का रोल बड़ा सशक्त रहा ।

उसके बाद तो आप जानते ही हैं --माधुरी को ले गया डॉ नेने

लाखों करोड़ों दिलों को तोड़कर माधुरी यू एस चली गई --अपने दिल के डॉक्टर के पास
डॉ श्री राम नेने दिलों को जोड़ने का काम करते हैं । जी हाँ , वो एक कार्डियोलोजिस्ट हैं ।




उम्र के साथ चेहरा ढल जायेगा । चेहरे पर पहले रेखाएं , फिर झुर्रियां आ जाएँगी ।
लेकिन यह करोड़ों वाट की मुस्कान वैसी ही रहेगी ।

क्योंकि मनुष्य के शरीर में दांत ही ऐसे अंग है जो हजारों साल के बाद भी नष्ट नहीं होते , बशर्ते कि उनमे कीड़ा न लगे ।
( वैसे दांत का कीड़ा भी एक कवि की कल्पना जैसा ही हैजो हकीकत में नहीं होता । )

पता चला है कि इसी मुस्कान के साथ माधुरी जी जल्दी ही कॉफ़ी विद करन प्रोग्राम में नज़र आएँगी टी वी पर ।
चलिए इंतज़ार करते हैं , आपके साथ हम भी ।

नोट : ब्लॉग जगत में माहौल कुछ इस कदर बिगड़ा हुआ था कि एक बार तो ब्लोगिंग छोड़ने का दिल करने लगाफिर सोचा कि क्यों थोडा माहौल बदला जायेआखिर बहुत हो गई ---देश , धर्म और ज्ञान की बातें

Thursday, January 13, 2011

जब ताऊ के दर्शन हुए --सपने में --

कल सतीश सक्सेना जी की पोस्ट पढ़कर हमारी भी ताऊ जी से मिलने की इच्छा प्रबल हो उठी । समीर लाल जी के सुपुत्र की शादी में जाने का सौभाग्य तो हमें भी मिला था । लेकिन जैसा कि सतीश जी ने लिखा कि ताऊ जी से मिलने को वंचित रह गए और राज़ राज़ ही रह गया कि आखिर ताऊ है कौन । और कैसे दिखते हैं ताऊ ?

हमें भी शादी में ताऊ के दर्शन होने का बेसब्री से इंतज़ार था । लेकिन ताऊ सबको चकमा दे कर अदृश्य ही रहे ।

लेकिन वो कहते हैं न कि यदि सच्चे दिल से मांगो तो खुदा भी मिल जाता है ।

तो भई हमने भी दिल में ठान लिया कि ताऊ के दर्शन करके ही रहेंगे ।

बचपन में दादाजी से सीखा था कि यदि रात में सोते समय राम का नाम लेते हुए सोयें , तो सारी रात भगवान के भजन का पुण्य मिलता है ।

इसलिए कल रात हमने राम राम राम की जगह ताऊ ताऊ ताऊ -राम राम राम --का जाप करना शुरू कर दिया । और देखिये चमत्कार हो गया । ताऊ ने सपने में आकर विशेष रूप से हमें अपने विराट रूप का दर्शन कराया । ठीक वैसे ही , जैसे गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन को कराया था ।


लेकिन यह क्या , दर्शन कर हम तो धर्मसंकट में फंस गए । हमें अपने पिताजी द्वारा सुनाया एक किस्सा याद आ गया ।

पिता जी के एक मित्र थे , रिटार्यड ब्रिगेडियर । जब पहली बार पिताजी उनसे मिले तो बोले --ब्रिगेडियर साहब , हम तो समझ रहे थे कि एक लम्बे चौड़े , बड़ी बड़ी मूंछों वाले , रूआबदार व्यक्तित्त्व वाले फौजी से सामना होगा । लेकिन आप तो पतले दुबले सीधे सादे से इंसान निकले ।


स्वपन में ताऊ जी से मिलकर हमें भी कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ । हम तो समझे थे कि धोती कुर्ता पहने , उस पर काले रंग की जैकेट पहने , एक कमज़ोर से वृद्ध से मुलाकात होगी जिनके न मूंह में दांत होंगे न पेट में आंत

ऊपर से बिना बात ठहाका लगते नज़र आयेंगे जैसे कि हरयाणवी लोग किया करते हैं ।

लेकिन सपने में हमने पाया एक शक्श जो कद में हमसे भी २-३ इंच लम्बा , उम्र में ३-४ साल बड़ा , ४-५ किलो ज्यादा वज़न वाला और ५-६ गुना ज्यादा हैंडसम नौज़वान निकला । और तो और दांत भी पूरे के पूरे सही सलामत । लेकिन बेहद गंभीर मुद्रा में । हमने कहा ताऊ एक हरयाणवी जोक ही सुना दो , वो भी नहीं ।

बस इतना ही कहा --हे भक्त , हम शादी में भी आए थे , फोटो भी खिंचवाए थे । लेकिन कोई हमें पहचान नहीं पाएगा ।




नोट
: फोटो सतीश सक्सेना जी के ब्लॉग से , बिना अनुमति लिए , इस विश्वास के साथ कि उन्होंने ज़रूर समीर लाल जी से अनुमति लेकर ही छापी होगी ।
साथ ही नव विवाहित युग्ल के लिए ढेरों आशीर्वाद सहित ईश्वर से प्रार्थना कि ये जोड़ी सदा सुखी रहे और लाल परिवार सदा फले फूले ।

Monday, January 10, 2011

घर की शिक्षा ही बच्चे को एक अच्छा इंसान और अच्छा नागरिक बनाती है--

क्या आपने कभी किसी कुम्हार को चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाते देखा है ? देखिये किस तरह वह मिट्टी को गूंधकर चाक पर घुमाकर मन चाही आकृति प्रदान कर मिट्टी के बर्तन बना देता हैपसंद आने पर तोड़कर फिर एक नया बर्तन बना देता है

फिर वह उसे अंगारों में दबाकर पका देता हैऔर बर्तन हो गए तैयार इस्तेमाल के लिए

लेकिन अब यदि वह चाहे भी तो उन्हें तोड़कर दोबारा नए बर्तन नहीं बना सकता
क्योंकि बर्तन अब पक गए हैं


इसी तरह एक चित्रकार को देखियेवह कोरे कागज़ पर मन चाहे रंग भर कर तस्वीर बनाता है
लेकिन एक बार तस्वीर बन गई और रंग भर दिए , तो फिर उसके बाद वह चाहे भी तो तस्वीर की शक्ल नहीं बदल सकता
क्योंकि तस्वीर में भरे रंग मिटाए नहीं जा सकते

कुछ ऐसा ही हाल बच्चों के मन मस्तिष्क का होता है

जब तक बच्चे का मन कच्चा है , आप उसे जो चाहे सिखा सकते हैं
जब तक बच्चे का मन कोरा है , आप जो चाहे उस पर रंग भर सकते हैं

एक बार पक गया , यानि परिपक्व हो गया , फिर चाहकर भी आप कुछ नहीं बदल पाएंगे
इसलिए समय रहते ही बच्चों पर ध्यान देना ज़रूरी है
लेकिन किस आयु तक ?

पहले जहाँ बच्चों को १४-१५ वर्ष की आयु तक समझाया जा सकता था , अब आप -१० वर्ष की उम्र तक ही बच्चे को काबू कर सकते हैं
क्योंकि उसके बाद आधुनिकता की आंधी में बहकर वह आपसे ज्यादा दुनिया देख चुका होता है
कहते हैं जितना शिक्षा स्कूल कॉलिज में ज़रूरी है , उतनी ही घर की शिक्षा भी ज़रूरी है
बल्कि घर की शिक्षा ही बच्चे को एक अच्छा इंसान और अच्छा नागरिक बनाती है

समय निकल जाने के बाद , सिर्फ पछताने के और कुछ हाथ नहीं आता

बच्चे के कोमल मन पर इंसानियत का रंग भरते समय ध्यान रहे कि रंग कच्चा हो , वरना उतर जायेगा
जैसे कपड़ों से कच्चा रंग उतर जाता है

इसलिए यदि आवश्यकता हो , तो आप पहले अपना व्यक्तित्त्व सुधारें तभी बच्चों को कुछ सिखा पाएंगे

बच्चे सही रास्ते पर चलें , इसके लिए ज़रूरी है कि उनकी संगत सही होवरना वही हाल होगा जो एक रंगीन कपड़े को एक सफ़ेद कपडे के साथ धोने पर होता है

यानि एक कपड़े का काला रंग ,सफ़ेद कपड़े पर चढ़ जायेगा और फिर लाख कोशिश करलें , उतरेगा नहीं

और अब एक सवाल :

काले कपड़े का रंग सफ़ेद कपड़े पर चढ़कर उतरता क्यों नहीं ?
यानि यदि रंग इतना पक्का था तो उतरा क्यों ?
और यदि कच्चा था तो अब उतरता क्यों नहीं ?

शायद इसका ज़वाब कोई केमिकल या पॉलीमर इंजीनियर ही दे सकता है