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Thursday, May 26, 2016

सोच बदलो , देश बदलो --


सामने एक शानदार गाड़ी चली जा रही थी। अभी हम उसकी खूबसूरती और शान ओ शौकत की मन ही मन प्रसंशा कर ही रहे थे कि अचानक उसकी एक खिड़की खुली और सड़क पर एक पानी की खाली बोतल फेंक दी गई। बोतल जैसे ही हमारी गाड़ी के पहिया के नीचे आई , एक जोर की आवाज़ आई जैसे टायर फट गया हो। हमने घबराकर गाड़ी साइड में लगाकर देखा तो पाया कि पहिया तो सभी सही थे लेकिन वो बोतल पहिया के नीचे आकर फट गई थी। आवाज़ उसी की थी।

हम अक्सर सैकड़ों पर फैली गंदगी , कूड़ा करकट , खुले में पेशाब करने की लोगों की आदत , खुले आम चलते चलते सड़क पर थूकना , पान की पीक किसी भी कोने में मार देना , और साईकिलरिक्शाओं का ट्रैफिक में कहीं भी घुसकर ट्रैफिक को अस्त व्यस्त करने के लिए ग़रीबों , असहाय , देहाती और अनपढ़ लोगों को दोष देते हैं। बेशक ये सारी प्रॉब्लम्स ऐसे ही लोगों के कारण हैं। इसीलिए शहरों में जहाँ भी अनाधिकृत झुग्गी झोंपड़ी या कॉलोनी बस जाती हैं , उस क्षेत्र में ये समस्याएं बहुतायत में पाई जाती हैं।

लेकिन सबसे ज्यादा अफ़सोस तो तब होता है जब पढ़े लिखे , अमीर , सामर्थ्य वाले शहरी लोग भी नागरिक सुविधाओं का दुरूपयोग करते हुए दायित्वहीन व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं। कहीं भी गाड़ी खड़ी कर देना , यातायात के नियमों की धज्जियाँ उड़ाना , ज़रा सी बात पर रोड रेज़ में मरने मारने पर उतर आना , पर्यवरण की ओर पूर्ण उदासीनता और लापरवाही आदि इन तथाकथित सांभ्रान्त , सुशिक्षित और सभ्य समाज के लोगों की स्वार्थी प्रकृति को दर्शित करता है। इन्ही के सुकुमार बच्चे शहर के सबसे बेहतरीन विधालयों में पढ़ते हैं जहाँ उन्हें सिखाया जाता है कि कोई भी प्लास्टिक की वस्तु बाहर न फेंकें ताकि पर्यावरण को हानि न पहुंचे। लेकिन ये स्वयं अपने पद , पैसे और पहुँच के अहंकारवश शहर और देश के वातावरण को दूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। शायद इसीलिए हमारा देश स्वतंत्रता के ६८ वर्ष बाद भी विकासशील देश की श्रेणी में ही आता है और ऐसा लगता है कि अनन्त तक इसी श्रेणी में रहने वाला है।
सोच बदलो , देश बदलो।

5 comments:

  1. सटीक चिंतन ..
    सच है तभी तो हम हमारा देश विकासशील से विकसित नहीं हो पाया है आज तक .. ..जिस दिन हर एक व्यक्ति देश को अपना घर मान लगा उस दिन विकसित हो जाएगा हमारा देश ...

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (28-05-2016) को "आस्था को किसी प्रमाण की जरुरत नहीं होती" (चर्चा अंक-2356) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. आज की बुलेटिन इज्जत और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।

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  4. एकदम सच लिखा डाक्टर साहब , इस देश मे स्वयं को बदलना छोड़ , दूसरों को बदलता हुआ देखने की चाहत कहीं अंदर तक घर कर गई है । एक मुहिम चलनी चाहिए स्वयं बदलो , देश बदलो ....

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  5. सही बात ......... सोच बदलो , देश बदलो।

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