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Monday, September 28, 2009

और नही , बस और नही ---

पिछले एक महीने में मैंने अपनी ज्यादातर पोस्टों में दिल्ली और दिल्लीवालों के व्यवहार के बारे में अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। लेकिन जिस तरह का माहौल ब्लॉग जगत में चल रहा है, उसे देखकर तो ऐसा लगता है की ---और नही, बस और नहीं बहुत लिख लिया देश सुधार के बारे में। बस टाइम पास करो और खुश रहो।



अपने ब्लॉग का हाल तो दिल्ली के मॉल्स जैसा लगता है। फुट्फाल्स तो बहुत होते हैं, लेकिन कन्वर्जन रेट वही १० से १५ % ही है। यानि पढ़ते तो बहुत लोग हैं, लेकिन टिपण्णी देने का कष्ट कुछ लोग ही करते हैं। अब मॉल्स की बात तो समझ आती है , लेकिन टिपण्णी देने में तो एक पैसा भी नही लगता। ये अलग बात है की समय की भी कीमत होती है। इसलिए जितने भी साथियों ने इसके लिए अपना कीमती समय निकला, मैं उनका आभारी हूँ।



पिछली दो पोस्ट्स में मैंने दिल्ली की बुराइयों और अच्छाइयों को उजागर करने की चेष्टा की है। जैसा की अपेक्षित था, इस विषय पर बात करने में बुकेस कम और ब्रिक्बेट्स मिलने का चांस ज्यादा था। और वही हुआ भी। वैसे भी इस विषय पर तो हमारे नेताओं तक को नही बख्शा गया फ़िर हम क्या चीज़ हैं।



खैर जिन लोगों ने अपने विचार प्रकट किए , उनमे से कुछ का उल्लेख मैं यहाँ करना चाहूँगा।



दिल्ली में रहने वाले निशांत का कहना है की दिल्ली वाले बड़े बदतमीज़ है और बस आलू चाट और कुलचे छोले खाना जानते हैं। भाई निशांत, खाने के शौक तो सब के अलग होते हैं, इस में बुराई भी क्या है।



खुशदीप भाई ने तो दिल्ली को दिल में बसा लिया है, क्योंकि ये उनके दराल सर की दिल्ली हैं। ज्येष्ठ भ्राता स्नेह और सम्मान की ऐसी मिसाल कहीं और मिल सकती है क्या। लेकिन खुश भाई, यार ये सर मत कहा करो। सर कहने से मन पर जिम्मेदारियों का बोझ दस गुना बढ़ जाता है।



रायबरेली के फिजिसियन डॉ अमर कुमार को दिल्ली, नेताओं का लक्ष्य नज़र आती है। डॉ साहब आंशिक रूप से सही कह रहे हैं। लेकिन केन्द्र बिन्दु के इलावा ३६० डिग्री व्यू से अगर देखें तो दिल्ली के बहुमुखी रूप नज़र आयेंगे।

डॉ अमर कुमार का ब्लॉग जगत में काफी नाम है और मैं तो हैरान होता हूँ की डॉ साहब ब्लोगिंग के लिए समय कैसे निकाल लेते हैं। वैसे इस क्षेत्र में मेडिकल डॉक्टर तो गिने चुने ही हैं। डॉ अमर के इलावा मैं तो अभी तक डॉ अनुराग और डॉ श्याम से ही परिचित हुआ हूँ।



मेरा और डॉ अनुराग का सम्बन्ध तो ठीक वैसा है जैसा मेरा और शाहरुख़ खान का। हाँ, डॉ श्याम से दो तीन बार वार्तालाप ज़रूर हुई है।



हृषिकेश की सुनीता शर्मा जी, दिल्ली के बारे में क्या कहना चाहती हैं, ये तो मेरी समझ में नही आया। इतना ज़रूर समझ में आया की सुनीता जी शायद मेरी बात को समझ नही पायी। आगे से ध्यान रखूंगा।



डॉ श्रीमती अजित गुप्ता जी को दिल्ली बहुत मनभावन लगी। धन्यवाद , आपका स्वागत है। श्री समीर लाल जी, बबली जी, शोभना जी, पं डी के वत्स जी, और निर्मला कपिला जी को दिल्ली के बारे में अतिरिक्त जानकारी मिली। आप सब महानुभव दिल्ली से बाहर रहते हैं और दिल्ली भारत की राजधानी होने के नाते दिल्ली से लगाव रखते हैं ,आप सबका आभार।



अनाम लोगों के बारे में क्या कहें।



कुल मिलाकर ऐसा लगता है की बस अच्छा अच्छा लिखो, क्योंकि लोग बस अच्छा ही देखना, सुनना और पढना चाहते हैं। यहाँ अच्छा से मतलब बाहरी सुन्दरता से है. वैसे भी जिंदगी में इतनी परेशानियां है की और बातों पर दिमाग पर जोर डालने के लिए किस के पास टाइम है.


तो भई, आज के बाद हम भी बस सुन्दर ही लिखेंगे और सुदरता ही दिखाएँगे. बस ये काम अगली पोस्ट से ही शुरू.वैसे भी दिल्ली वालों को आइना दिखाने का काम आज से दैनिक समाचार पत्र --हिन्दुस्तान टाइम्स ने शुरू कर ही दिया है --दिल्लीवालों के दस कुकृत्यों ( बेड हैबिट्स ) में से रोज एक के बारे में विस्तार से बताकर, फोटोस सहित। अब आप को बुरा लगे या भला , फोटोस तो आज भी छपी हैं. दिल्ली वाले कब तक मुहँ मोडेंगे. हिन्दुस्तान टाइम्स को इस साहसिक कार्य के लिए बधाई.



आप सब को दुशहरे की हार्दिक बधाई। आज लंकापति रावण के साथ साथ अंतर्मन के रावण को भी दहन कर दें, मेरी यही कामना है।

6 comments:

  1. आज से सर नहीं कहूंगा, क्यों दराल सर...अरे फिर वही सर...आदत धीरे-धीरे ही जाएगी...रही बात अच्छा अच्छा ही देखने की, पढ़ने की, सुनने की...तो हमारी सबकी हालत उन बिल्लियों जैसी है जो रंगे हाथ पकड़े जाने पर आंख बंद कर ये सोचती हैं कि उन्हें कोई देख नहीं रहा...एग्रीगेटर को लेकर मैंने अपनी ताजा पोस्ट पर पांच सुझाव दिए हैं...आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा...

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  2. दिल्ली पर नजरे लगाये रहिये डा. साहब !
    आखिरकार वह हमारी राजधानी है !
    फासले ज्यादा न हो जाये ,
    आप लिखते रहिये !
    हमारी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं !

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  3. "टिपण्णी देने में तो एक पैसा भी नही लगता। ये अलग बात है की समय की भी कीमत होती है। इसलिए जितने भी साथियों ने इसके लिए अपना कीमती समय निकला, मैं उनका आभारी हूँ। "

    भाई इसी वक्त की कीमत को ध्यान रखते हुए मैंने अपने ब्लाग पर "आभारव्यक्ति" की परंपरा ही शुरू कर दी, जिसने पढ़ा और टिपण्णी की उसके प्रति क्या हम इतना भी सम्मान प्रदर्शित करने का हक नहीं? बिलकुल है और करना भी चाहिए.

    दराल जी आपके लेख बहुत पसंद किये जाते है और किये जाते रहेंगे., यदि आप अन्यथा न लें तो मेरा आपसे एक अनुरोध है ब्लाग लेखन लगभग प्रतिदिन न लिख कर सिर्फ हफ्ते में एक दिन ही करें, भले ही उसमें दो-तीन ब्लाग की सामग्री एक साथ हो, पढने वालों और टिपण्णी लिखने वालों को साँस लेने की मोहलत मिल जाती है इससे उस विशेष दिन आपके ब्लाग की पोस्ट का इंतजार भी मनोहर लगता है..

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  4. अब क्या कहें? सब बुजुर्ग कह रहे हैं वही हम मान लेते हैं. वैसे डाक्टर ना कुछ ठेला जाना चाहिये. इससे लेखक और पाठक दोनो कि सेहत अच्छी रहती है. हम तो इसी धर्म का पालन करते हैं.

    रामराम.

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  5. Dr sahab !!
    hauslaa-afzaai ka bahut-bahut shukriyaa .
    Sorry,,,could not go thru the previous posts... describing Delhi and around....
    certainly hv missed a lot

    ---MUFLIS---

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  6. मेरे ख्याल से हमें किसी की पसंद-नापसंद को देख कर अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति को दिशा नहीं देनी चाहिए ...ये बहता पानी है...जाने किस और का रुख कर ले?...

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