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Friday, December 16, 2016

नोटबंदी के दौर में श्री कृष्ण उवाच --


गीतानुसार दुनिया में तीन तरह की प्रवृति के लोग होते हैं -- सात्विक , राजसी और तामसी। यदि नोटबंदी के दौर में पैसे की दृष्टि से देखा जाये तो पैसे वाले अमीरों को इस तरह से परिभाषित किया जा सकता है :

१ ) सात्विक : व्यक्ति वे होते हैं जो अपने मेहनत से गुजर बसर करने के लिए पैसा कमाते हैं और सरकार को निर्धारित कर अदा कर देश निर्माण कार्य में योगदान कर अपना फ़र्ज़ अदा करते हैं। आवश्यकताएं पूर्ण होने के बाद ये संतुष्टि का जीवन यापन करते हैं। लेकिन ऐसे अमीर योगी दुनिया में विरले ही होते हैं। गरीबों के पास तो पैसा ही नहीं होता , इसलिए उनको वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।

२ ) राजसी : ये दो तरह के होते हैं। एक वो जो पैसा तो मेहनत और ईमानदारी से कमाते हैं लेकिन सरकार को कर न देकर कर की चोरी करते हैं। इस श्रेणी में अधिकांश व्यापारी वर्ग के लोग आते हैं जो कमाते तो लाखों करोड़ों हैं लेकिन आय कर , बिक्री कर और वैट आदि भरने से बचते हैं। दूसरे राजसी लोग वे होते हैं जो पैसा सही गलत किसी भी ढंग से कमाकर अपनी तिजोरियां भरते रहते हैं। इस श्रेणी में वे लोग आते हैं जो रिस्वत या किकबैक से करोड़ों कमा लेते हैं या अचल संपत्ति बेचकर कैश को दबाये रहते हैं। ये लोग अपराधी किस्म के नहीं होते लेकिन वस्तुत: अपराध ही करते हैं , गैर कानूनी ढंग से पैसा कमाकर। इनमे मुख्यतया सरकारी अफ़सर , कुछ नेता लोग , प्रोपर्टी डीलर्स या पहुँच वाले सफेदपोश ज्यादा होते हैं।
दोनों ही किस्म के लोग लालची और स्वार्थी होते हैं क्योंकि इन्हें सिर्फ अपने पैसे से मतलब होता है , ये देश या किसी और के बारे में नहीं सोचते।

३ ) तामसी : प्रवृति के लोग आपराधिक प्रवृति के होते हैं जैसे चोर , डाकू , अपहरणकर्त्ता , तस्कर , जालसाज़ , सट्टेबाज़ , ड्रग्स स्मगलर्स , प्रोफेशनल हत्यारे आदि जो अपराध की दुनिया में रहकर पैसा तो कमा लेते हैं लेकिन उसका सुख कभी नहीं भोग पाते क्योंकि ये सदा कानून से भागते रहते हैं। इसलिए इनकी जिंदगी भी क्षणिक होती है और असमय ही ख़त्म हो जाती है।
लेकिन हमारे देश में एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जिन्हें आम आदमी कहा जाता है। वे न तो अपराधी होते हैं , न अफसर , नेता या पहुँच वाले , न व्यवसायी और न ही इतना कमा पाते हैं कि उनके पास कभी ज़रुरत से ज्यादा पैसा हो। इन लोगों की जिंदगी अक्सर २ और ३ श्रेणी के लोगों द्वारा नियंत्रित और प्रभावित रहती है, एक कोल्हू के बैल की तरह। अक्सर यही वर्ग महंगाई से प्रभावित होता है । लेकिन शायद नोटबंदी से नहीं।


1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-12-2016) को "जीने का नजरिया" (चर्चा अंक-2559) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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